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बुलाओ मुझेपुआल के बिछौने सोना चाहूँ मैं।
स्वप्न-कटोरेभरी भरी आँखों सेछलक गए।
काँटों का वनकैसे पार करूँ मैंफूलों सा मन।
जो चाहे कहोहमें सुन लेने दोरोम-रोम से।
अपना घरधरती पर नहींकहाँ बसूँ मै।
-डॉ विद्या विंदु सिंह
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