हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये सुनाए जो लोरी वो माँ चाहिये
कहा किसने सारा जहाँ चाहिये हमें सिर्फ़ हिन्दोस्ताँ चाहिये
जहाँ हिंदी भाषा के महकें सुमन वो सुंदर हमें गुलसिताँ चाहिये
जहाँ भिन्नता में भी हो एकता मुझे एक ऐसा जहाँ चाहिये
मुहब्बत के बहते हों धारे जहाँ वतन ऐसा जन्नत-निशाँ चाहिये
तिरंगा हमारा हो ऊँचा जहाँ निगाहों में वो आसमाँ चाहिये
खिले फूल भाषा के 'देवी' जहाँ उसी बाग़ में आशियाँ चाहिये
-देवी नागरानी |