चारदीवारी और सड़क के बीच बच गयी है थोड़ी सी ज़मीन मिट्टी की एक पतली सी पट्टी पट्टी से सटे दीवार पर बड़े यत्न से रखे हुए हैं कुछ गमले जिनमें लगे हुए हैं लोक-लुभावन, गुण-गंध-रसहीन कुछ ब्रांडेड फूल और विदेशी नस्ल के लम्बे-लम्बे पत्ते जिसे नाजों से सींचते रहते हैं उस घर के मालिक । पाइप से छिटके हुए पानी से अनायास ही भीगती रहती है दीवार के किनारे की वह मिट्टी उसी छिटके हुए छींटों के भरोसे
पनपने को बैचैन हैं कुछ खरपतवार जिनसे अब सहन नहीं हो रहा गर्भभार प्रसव की पीड़ा से होकर व्याकुल छटांक भर मिट्टी और छींट भर पानी का आश्रय पाकर जनने को विवश है स्वांश । उस जगह को अनुकूल पाकर वनस्पतियों के शेष सूक्ष्म प्राण में होड़ सी मची है हथियाने को ज़मीन का वह टुकड़ा जहाँ बसाना हैं उन्हें अपना संसार हरी हरी साड़ी में पीले पीले फूलों की फुलकारी वाली चांगेरी सालों से नहीं जन पायी अपना पेट गर्भ में ही सड़ गया उस साल का भ्रूण घर की सफ़ाई और चूना-पोचारा में खिलने से पहले ही वह रौंद दी गई थी । कंटैया, भंगेरिया, पुनर्नवा, सहदैया, द्रोणा, कन्ना फुलचौलाई, सांवली सी भटकोंइयां जलपिपली और मकोय्या के बीच घुस आया है दबंग पीपल और वट भी लगातार क्रंक्रीट में बदलती मिट्टी विलुप्त होते जलस्रोत और नालियों से बहते रसायन के बीच दारुण परिस्थिति में भी बचा है अद्भुत जीवटपन ! सुरक्षित रखा है सबने अपना कुक्षिकोष मगर इतनी छोटी सी जगह में ये कैसे बसा पाएँगी अपना परिवार ? कैसे बचा पाएँगी अपने विलक्षण गुण-धर्म धारक वंश को ? एक-दूसरे पर चढ़ती जा रही हैं सुई की नोंक भर धरती को हथियाने को
जारी है युद्ध और गुत्थमगुत्थी । मगर ये क्या ? आश्चर्य ! अतिक्रमण के लिए आक्रमण पर उतारु एक से एक लड़ाकिनें आज सब गले मिल रो रही हैं ! ओह ! अब बचा नहीं पाएगी अपनी वंश-परंपरा मकान मालिक ने आज ही मंगवाया है सीमेंट और बालू उस पतली पट्टी को कंक्रीट करने के लिए ताकि मकान का सौन्दर्य बना रहे पानी के छींटें मिट्टी पर पड़ने से गंदी हो जाती थी दीवारें शायद इसीलिए गले मिलकर रो रही हैं शेष वनस्पतियाँ आपस में अंतिम बार।
-रंजू मिश्रा बनारस, भारत ई-मेल : ranjumishra14@gmail.com |