हिंदी भाषा के लिये मेरा प्रेम सब हिंदी प्रेमी जानते हैं। - महात्मा गांधी।
कह मुकरियाँ (काव्य)  Click to print this content  
Author:स्मिता श्रीवास्तव

बगिया में है एकछत्र राज
इत्र की दुनिया का सरताज
गुलदस्ते में अलग रुआब
क्या सखि साजन न सखि गुलाब

नदिया में वह सैर कराये
वर्षा हो तो खूब इतराये 
जिधर का रुख हो उधर बहाव
क्या सखि साजन न सखि  नाव 

प्राणी जगत ताप से व्याकुल
हर पल गर्मी करती आकुल
तपते तन मन का रखे ख्याल
क्या सखि साजन न सखि तरणताल 

-स्मिता श्रीवास्तव
 भारत

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