मित्र यह बड़ी तुम्हारी भूल जो है सुख का मूल उसे तुम समझ रहे हो शूल
कोमल कल्प वृक्ष को मानो कंटक-वृक्ष बबूल प्रेम-फूल के रस-पराग को गिनो द्वेष- विष-धूल मित्र यह बड़ी तुम्हारी भूल
जो है अति प्रतिकूल उसी को जानो हो अनुकूल जरा कष्ट से दब जाते हो, जरा हर्ष से फूल मित्र यह बड़ी तुम्हारी भूल
-श्रीधर पाठक |