हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
गिरिधरराय की कुण्डलियाँ (काव्य)  Click to print this content  
Author:गिरिधर कविराय

साईं समय न चूकिये, यथाशक्ति सन्मान।
को जानै को आइहै, तेरी पौंरि प्रमान॥
तेरी पौंरि प्रमान, समय असमय तकि आवै।
ताको तू मन खोलि, अंकभरि हृदय लगावै॥
कह गिरिधर कबिराय सबै यामें सुधि आई।
शीतल जल फल-फूल समय जनि चूकौ सांई॥

बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय॥
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान पान सन्मान, राग रंग मनहिं न भावै॥
कह गिरिधर कबिराय दुःख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माहिं कियो जो बिना बिचारे॥

दौलत पाइ न कीजिये सपने में अभिमान।
चञ्चल जल दिन चारिको ठाउँ न रहत निदान॥
ठाउँ न रहत निदान जियत जग में यश लीजै।
मीठे बचन सुनाय विनय सबही की कीजै॥
कह गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निशिदिन चारि रहत सबही के दौलत॥

-गिरिधर कविराय

Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश