मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
आदमी और दीवार (काव्य)  Click to print this content  
Author:मंगत बादल

एक आदमी
बगावत का पोस्टर लिये
दीवार के पास खड़ा है,
यह आदमी
सही मायने में
अपने कद से बड़ा है।
उसकी आँखों में
एक जंगल उग आया है,
जिसके तमाम रास्ते
उसने याद कर लिये हैं ।
उसके कदमो में अब
भटकाव की जगह
विश्वास की झलक है
अब एक ऊंचाई तक
दीवार उसके साथ है
जहाँ उसका आक्रोश
और तनी हुई मुट्ठी
हर कोई देख सकता है।
क्रांति की जलती हुई मशाल
थामने के लिये
उसके हज़ार-हज़ार हाथ हैं
ये हाथ ही
वर्तमान के पृष्ठ पर
भविष्य का इतिहास बनाते हैं।
और उसकी प्रबल धारा से
दुर्द्धर्ष संघर्ष करते हुए
उत्सव मनाते हैं।
क्योकि दीवार जब
आदमी के संघर्ष से जुड़ जाती है
तब तमाम पुरातन मान्यतायें
नये युग की ओर मुड़ जाती है।

-मंगत बादल
[मत बांधो आकाश, सूर्य प्रकाशन मंदिर, बिकानेर]

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