भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
कानून मिला हमको  (काव्य)  Click to print this content  
Author:प्रदीप चौबे

दिल्ली, बंबई, काशी, देहरादून मिला हमको,
बस्ती-बस्ती इंसानों का खून मिला हमको।

वे जाने किस मौसम के पंछी होंगे जिनकी,
ऑंखें सावन-भादो, चेहरा जून मिला हमको।

जिनकी जेबों में झरने थे, खातों में गुलशन
उनकी सोचों के भीतर नाखून मिला हमको।

हँसते में रोता सा लगता, रोते में हँसता,
इस बस्ती का आदम अफलातून मिला हमको।

अंधा, बहरा, लंगड़ा, लूला कोने में दुबका,
एक मिनिस्टर के घर पर कानून मिला हमको।

-प्रदीप चौबे

 

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