मेरी भाषा का व्याकरण पाणिनि नही पददलित ही जानते हैं क्योंकि वे ही मेरे दर्द को-- पहचानते हैं : मेरी कविता का कमल बगीचे के जलाशयों में नही; झुग्गी-झोंपड़ियों के कीचड़ में खिलेगा मेरी कविता का अर्थ उत्तर-पुस्तिकाओं में नहीं फुटपाथों पर मिलेगा !
-मदन डागा |