जो प्रेमशक्ति की मायावी , जाया बनकर उतरी जग में। आह्लाद बढ़ाती हुई बढ़ी , बनकर छाया छतरी मग में।।
बलिदान त्याग की महामूर्ति , ममता की सागर धैर्यव्रता। करुणाकरिणी दैवीय दीप्ति, साहस की जननी शान्ति सुता।।
हे विनयशालिनी युगमुग्धा, भू भुवनमोहिनी प्रियंवदा। रागानुरागिणी कनक काय, परपोषी तोषी अलंवदा।।
नारी के मन की कोमलता, कमनीय देह के आकर्षण। मधुरिम सुर नयनों के कटाक्ष, लज्जा के मृदु हर्षण-वर्षण।।
उद्दाम - काम उन्मत्त - प्रेम, दुर्दम्य ललक का विकट जाल। उस पर प्रजनन का दिव्य कोष, पौरुष को कर देता निढाल।।
इस तन का मादा रूप देख, दुनिया ने नारी नाम दिया। नर ने भी जीवन शक्ति समझ, अर्द्धांग मान कर थाम लिया।।
नारी के गुण ही नारी को, दुर्बल या सबल बनाते हैं। इनके कारण ही नर - नारी, दोनों सम्बल बन जाते हैं।।
नारी के गुण के कारण ही, नर नरपिशाच बन जाता है। नारी के गुण के कारण ही, नर नारिदास बन जाता है।।
नारी के गुण के कारण ही, रण भीषण हुए जमाने में। नारी के गुण के कारण ही, टल गये युद्ध अनजाने में।।
नारी नर की है प्राण शक्ति, दोनों की प्रेम पगी डोरी। नारी नर की है शक्ति भक्ति, नारी ही नर की कमजोरी।।
दोनों दोनों के हैं पूरक , दोनों दोनों के हितकारी। कोई भी छोटा बड़ा नहीं, नारी भारी नर भी भारी।।
-गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण' 'वृत्तायन' 957 स्कीम नंबर 51 इन्दौर-452006 ई-मेल : prankavi@gmail.com मोबाइल : 9424044284 6265196070 |