कौन मानेगा सबसे कठिन है सरल होना!
खाता है बेटा तृप्त हो जाती है माँ बिना खाए ही!
समुद्र नहीं परछाईं खुद की लाँघो तो जानें !
मुझ में भी हैं मेरी सात पीढ़ियाँ तन्हा नहीं मैं!
प्रकृति लिखे कितनी लिपियों में सौंदर्य-कथा!
सुन सको तो गंध-गायन सुनो पुष्प कंठों का!
पल को सही बुझने से पहले लड़ी थी लौ भी!
कहाँ हो कृष्ण अत्र तत्र सर्वत्र कंस ही कंस!
यदा यदा हि... तूने कहा था कृष्णा याद तो है ना ?
देख लेती हैं जीवन के सपने अंधी ऑंखें भी!
-कमलेश भट्ट कमल |