मैं लड़ूँगा यह युद्ध भले ही तुम कुचल दो मेरा अस्तित्व।
तुम्हारी शोषण की वृत्ति को दूँगा चुनौती। ये जानकर भी कि तुम अत्यंत शक्तिशाली हो। तुमने न जाने कितनों को तहस नहस किया है।
तुम्हारे अहंकार ने तुम्हारी विचारधारा ने। तुम्हारे लाल पीले नीले हरे झण्डों ने तुम्हारे धर्म के ओढ़े लबादों ने गैरबराबरी की साजिश ने कितनों को रक्तरंजित किया है।
सिसकते मंदिर रोती मस्जिदें अल्ला हो अकबर जय श्री राम के नारे जलते घर टूटते घर धर्म पर बँटते मन पक्ष विपक्ष की जूतमपैजार इन सबके पीछे सिर्फ तुम्हारा घिनौना मुस्कुराता चेहरा।
मैं नही डरूँगा तुमसे तुम्हारी कुटिल चालों से। मुझे मालूम है तुम मुझे हरा दोगे कुचल दोगे। मेरे जायज़ अहसास के अस्तित्व को। लेकिन मैं फिर भी लड़ूँगा तुमसे नही बैठूँगा तुम्हारे सामने घुटनों पर।
-डॉ. सुशील शर्मा |