तुलसी के प्रति (काव्य) |
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Author:रामप्रसाद मिश्र |
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ओ महाकवे ! क्या कहें तुम्हें, ऋषि? स्रष्टा? द्रष्ठा? महाप्राण? अपनी पानवतम वाणी से तुम करते संस्कृति-परित्राण । मेरी संस्कृति के विश्वकोश के निर्माता जनकवि उदार, ओ भाषा के सम्राट, राष्ट्र के गर्व, भक्तिपीयूषधार ! अचरज होता, तुम मानव थे, तन में था यह ही अस्थि-चाम ! ओ अमर संस्कृति के गायक तुलसी ! तुमको शत-शत प्रणाम ।
कितने कृपालु तुम हम पर थे, जनवाणी में गायन गाए ! सद्ज्ञान, भक्ति औ' कविता के सब रस देकर मन सरसाए। मानवता की सीमाओं को दिखलाया अपने पात्रों में, ब्रह्मत्व भर दिया महाकवे ! तुमने मानव के गात्रों में। वसुधा पर स्वर्ग उतार दिया मेरे स्रष्टा, ओ आप्तकाम ! ओ अमर संकृति के गायक तुलसी! तुमको शत शत प्रणाम ।
-रामप्रसाद मिश्र धर्मयुग, जुलाई 1958 [इसमें रचयिता का नाम आनंदशंकर लिखा था। रामप्रसाद मिश्र उन दिनों आनंदशंकर नाम से लिखते थे।] |
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