भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
शायर बहुत हुए हैं--|  (काव्य)  Click to print this content  
Author:निज़ाम-फतेहपुरी

शायर बहुत हुए हैं जो अख़बार में नहीं।
ऐसी ग़ज़ल कहो जो हो बाज़ार में नहीं।।

दिल से मिटा के नफ़रतें मिलकर रहो सदा।
जो लुत्फ़ प्यार में है वो तकरार में नहीं।।

अपनी कमी कहें की ये क़िस्मत का खेल है।
साहिल पे कश्ती डूबी है मझधार में नहीं।।

पहचान होती वीरों की मैदान-ए-जंग में।
जो मर्द है वो भागता शलवार में नहीं।।

आकर चले गए हैं सिकंदर बहुत यहाँ।
तुम चीज़ क्या अमर कोई संसार में नहीं।।

माया का मोह छोड़ के तू देख तो ज़रा।
जो है मज़ा फ़क़ीरी में परिवार में नहीं।।

जिस ताज पर निज़ाम तुझे इतना नाज़ है।
वो इक जगह र हा किसी दरबार में नहीं।।

-निज़ाम-फतेहपुरी
 ग्राम व पोस्ट मदोकीपुर
 ज़िला- फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत
 ईमेल :  babukhan3716@gmail.com
 6394332921
 9198120525

 

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