मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
पाँच क्षणिकाएँ  (काव्य)  Click to print this content  
Author:नवल बीकानेरी

अर्थी के
अर्थ को
अगर मानव समझता
तो कदाचित्
अर्थ का
सामर्थ्य समझता।

#

एक मुट्ठी में आज है
एक मुट्ठी में कल
कौन-सी मुट्ठी खोलूँ
तू सोचकर बता।

#

आदमी की कमर को
सड़क मत समझो।

#

पाँव के नीच से
निकाल गई
एक छोटी-सी कीड़ी,
बड़ी-सी बात कहकर
कि
मारने वाले से
बचाने वाला बड़ा होता है।

#

धर्म का संकट
संकट का धर्म
ऐसा धर्म
मुझे नहीं चाहिए।

- नवल बीकानेरी
[कागज का घर]

 

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