मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
अजब हैरान हूँ भगवन् (काव्य)  Click to print this content  
Author:अज्ञात

अजब हैरान हूँ भगवन्, तुम्हें क्योकर रिझाऊं मैं।
कोई वस्तू नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं॥

करूँ किस तरह आवाहन, कि तुम मौजूद हरजा।
निरादर है बुलाने को, अगर घंटी बजाऊं मैं॥

तुम्हीं हो मूरती में भी, तुम्हीं व्यापक हो फूलों में।
भला भगवान को भगवान, पर कैसे चढ़ाऊं मैं॥

लगाया भोग कुछ तुमको, यह इक अपमान करना है।
खिलाता है जो सब जग को, उसे कैसे खिलाऊं मैं॥

तुम्हारी ज्योति से रौशन हैं सूरज चाँद और तारे।
महा अँधेरे है तुमको अगर दीपक दिखाऊं मैं॥

भुजाएँ हैं न सीना है न गर्दन है न पेशानी।
कि हैं निर्लेप नारायण कहाँ चंदन लगाऊं मैं॥

-अज्ञात
[भक्ति काव्यामृत, सम्पादन : पं लक्ष्मीधर शास्त्री ]

 

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