कविता........! सतत अधूरापन है पहले से दूजे को सौंपा आप नया कुछ और रचो भी कविता नहीं पूर्ण होती है। कितने साथी छोड़ किनारे वह अनवरत बहा करती है कितने मृत कंकाल उठाए वह अर्थी बनकर चलती है सभी निरर्थक संवादों को संवेगों से ही धोती है कविता नहीं पूर्ण होती है।
-कविता वाचक्नवी [ साभार : मैं चल तो दूँ, 2005, सुमन प्रकाशन, हैदराबाद, भारत ]
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