दीप की लौ सा लुटा कर प्यार अपना पा नहीं पायी हूँ अब तक प्यार सपना, कह रहा है मन कि प्रियतम, पास आओ जोह रहे हैं नयन मधु-मय प्यार अपना ।
तुम बड़े भोले हो देखो प्यार आया प्यार की घुमड़न है देखो कौन लाया, यह ऋतु सावन बहारें आ गई हैं पुष्प कहते हैं कि मन-भावन न आया ।
लौट कर बादल मुझे कुछ कह गया है प्यार भरने के लिये वह बह गया है, धड़कने मन की विकल हो कह रही हैं सह्म नहीं है वेदना, मन दह गया हैं ।
साधना के पुष्प मुरझाने लगे हैं वेदना के गीत भी आने लगे हैं, प्यार का उल्लास लेकर लौट आऔ भावना से श्रंग बल खाने लगे है॥
-राजकुमारी गोगिया ईमेल: gogiamuskan2002@gmail.com |