बापू, तुम करो स्वीकार आज शत शत मस्तकों का नमन बारबार जा रहे हो तुम, हमारा जा रहा है ध्रुव सहारा नेत्र से अब बह रही है सिंधु-जल-सी अश्रुधारा कंटकों से हम रहे, तुम फूल के शृंगार तर्जनी तुमने उठायी उठ गया यह विश्व सारा जब कि मानवता भ्रमित थी रोककर तुमने पुकारा की घृणा जिसने उसी को दे गए तुम प्यार आज हम किस भांति तुमको चिर विदा दे देश त्राता तिमिरमय आकाश होता जब कि रवि है डूब जाता दे सको नव प्रात तुम फिर, लो पुन अवतार
बापू, तुम करो स्वीकार आज शत शत मस्तकों का नमन बारबार
-रामकुमार वर्मा
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