कोई पूछता है, कौन सा इत्र है? खुशबू गज़ब की आती है! तब बीता कल मुस्काता है इक याद जवां हो जाती है
अपनी धरती छूटी थी जब जान पर बन आई थी आँखों में थी गंगा-यमुना मिट्टी सीस लगाई थी वह पावन मिट्टी मैं थोड़ी सी खाकर आयी थी और थोड़ी सी बाँध पोटली संग अपने ले आई थी
आ परदेस में वही पोटली निज मंदिर में सजाई मूर्ति-स्थापना हुई तो पोटली-स्थापना भी करवाई सुबह-शाम जब मंदिर में ईश्वर को शीश नवाया उठा पोटली मिट्टी की माथे से उसे लगाया
मिट्टी भी मिट्टी में घुलके रंग अजब दिखलाती है देह से अब मेरी धरती की महक रेशमी आती है
डॉ अनीता शर्मा शंघाई(चीन)
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