भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
काम बनता हुआ भी बिगड़े सब | ग़ज़ल (काव्य)  Click to print this content  
Author:अंकुर शुक्ल 'अनंत'

काम बनता हुआ भी बिगड़े सब
अक़्ल पर पड़ गए हों पत्थर जब

आदमी हो तो वो नज़र आओ
बात करने का पहले सीखो ढब

जबसे मज़हब का राग पनपा है
काम की सब गईं हैं बातें दब

वो सुनेगा सभी की फ़रियादें
गर दुआओं से हों शनासा लब

क्या ये है बोलने की आज़ादी
बोल दो जो जिसे रहा हो फब

आपदाएँ रहीं हैं पूछ सुनो
आप सुधरोगे ये बताओ कब

हो गई गुमशुदा हया सारी
उफ़ ये टिक टॉक जो चला है अब

-अंकुर शुक्ल 'अनंत'

मोबाइल : 7398929202
ई-मेल : shuklaankur12350@gmail.com

 

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