साथ छोड़ दे साँस, न जाने कब थम जाए दिल की धड़कन। बोझ उठाये कंधों पर, जीते कितना अभिशापित जीवन॥
हिन्दू हो यामुसलमान, है हर मजदूर की एक कहानी। बूंद बूंद को तरस रहे, प्यासे होठो को ना है पानी॥ फटकर बहता खून, दर्द से व्याकुल, हैं पैरों में छाले। भूखे तड़प रहे बच्चे, न मिल पाते दो एक निवाले॥ गर्मी से जलती सड़कों पर घायल होता है नित तन मन। बोझ उठाये कंधों पर, जीते कितना अभिशापित जीवन॥
आज उपेक्षित हुए वही जो हैं महलों की नींव के पत्थर। बिलख रहे बच्चे बूढ़े, घुट घुट कर मरते सड़कों पर॥ रोज हादसे रोज मौत होती, घायल चीत्कार रहे हैं। तोड़ रहे है दम राहों में, उजड़ कई परिवार रहे हैं॥ हालातों के हाथ हुए बेबस, करते है मौन समर्पण। बोझ उठाये कंधों पर, जीते कितना अभिशापित जीवन॥
तन का नही खयाल, लगी है धुन इनको बस घर जाना है। नाप लिया पैदल सड़को को, जिद है बस मंजिल पाना है॥ जीवन खपा दिया सेवा में, बस इसका इतना बदला दो। अरे सियासतदानों, थोड़ा रहम करो, घर तक पहुचा दो॥ क्या पाएंगे मरने पर, तुम जलवा दो चाहे रख चंदन। बोझ उठाये कंधों पर, जीते कितना अभिशापित जीवन॥ - डॉ॰ गोविन्द 'गजब' रायबरेली उत्तर प्रदेश, भारत वाट्सअप: 8808713366 ई-मेल: gajab3940@gmail.com |