भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
मिलती हैं आजकल  (काव्य)  Click to print this content  
Author:गुलशन मदान की गज़ल

मिलती हैं आजकल उन्हें ऊँचाइयां मियां
जिनसे बहुत ही दूर हैं अच्छाइयां मियां

मुझको वहाँ के लागे सब रोते हुए मिले
बजती थी कल तलक जहां शहनाइयां मियां

तारीकियों में साथ चलने की किसे कहें
चलती नहीं हैं साथ जब परछाइयां मियां

रख दो किताबें बांध कर तुलसी कबीर की
पढ़ता है कौन आजकल चौपाइयां मियां

उनकी सलीबो-दार ही ईनआम में मिले
करते रहे जो उम्र भर अच्छाइयां मियां

सागर की सतह से ही जो आए हैं लौट कर
उनका है दावा देखी हैं गहराइयां मियां

अब दूर ले चलो कहीं दुनियां की भीड़ में
'गुलशन' की भाती है फ़कत तन्हाइयां मियां।

--गुलशन मदान, कैथल, हरियाणा, भारत   
   [गुलशन मदान की चर्चित गज़लें]

 

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