एक विचार
मैं भी माटी, तू भी माटी, छोड़ ये झगड़ा माटी का कल भी यहीं था, यहीं रहेगा, जमीन का टुकड़ा माटी का पुराने मालिक सोये हैं सब, ओढ़ के चादर माटी की नए हक़दार शुरू करेंगे, नया बखेड़ा माटी का मैं भी माटी, तू भी माटी, छोड़ ये झगड़ा माटी का
- दिनेश भारद्वाज, न्यूज़ीलैंड
चंद पंक्तियाँ
डर बहुत था बारिश का, जब तक कपडे मेरे सूखे थे कोसते थे हालात को, खुद से भी हम रूठे थे भीगे हैं तो क्या हुआ बारिश का डर जाता रहा मौसम का लहजा बदल गया, तेवर जिसके रूखे थे डर बहुत था बारिश का, जब तक कपडे मेरे सूखे थे
- दिनेश भारद्वाज, न्यूज़ीलैंड
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