तीन शब्द
तीन शब्द---- हाँ! तीन ही शब्द
नफरत! शक!! डर!!!
बोए और काटे जा रहे हैं हर वक्त रिश्तों की जड़ों में सींचकर ज़हर!
--- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
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खबरदार!
तुम रक्षक हो या भक्षक? मासूमों की चीख सुनकर भी तुम्हारे कण नहीं खुलते!
कब तक बहलाओगे झूठी कहानियों से?
शिकारी को छोड़कर शिकार को लूट रहे हो ! इन्साफ माँगने वालों को सजा दे रहे हो?
सारे शिकार एकजुट हो रहे हैं, तुम्हारे खिलाफ बगावत तय है!
- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा सह-संपादक 'स्रवंति' असिस्टेंट प्रोफेसर |