बच्चे तो हैं, पर बचपन कहाँ हैं? वो मासूमियत, वो रौनक कहाँ हैं? वो खेल, वो खिलौने कहाँ हैं? वो मस्ती और वो मौज कहाँ हैं? उलझ सा गया है बचपन.....
उठ कर पढ़ना, पढ़ कर सोना, किताबों की दुनिया मे हर वक़्त खोना वो नज़र, वो प्यार कहाँ हैं? वो आँसू, वो मुस्कान कहाँ हैं? बिखर सा गया है बचपन.......
कंप्यूटर, मोबाइल, टीवी चलाना इन्हीं के खेलों में खो जाना, वो रूठना, वो मनाना कहाँ हैं? हर शाम का वो अफसाना कहाँ है? सिमट सा गया है बचपन......
वो बारिश में भीगना वो मिट्टी में खेलना, वो पड़ोस के हर घर में अपनी हँसी बिखेरना, अब वो मंज़र, वो बात कहां हैं? वो नन्हें कदमों की आवाज कहाँ है? अब तो बस एक होड़ लगी है सबसे आगे निकलने की, इस दौर में इस दौड़ में खो सा गया है बचपन.......
माधुरी शर्मा ' मधु' व्याख्याता हिंदी भीलवाड़ा राजस्थान ई-मेल: madhuri.sharmaxyz@gmail.com
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