जाम होठों से फिसलते, देर नहीं लगती किसी का वक़्त बिगड़ते, देर नहीं लगती
न समझो हर किसी को किस्मत अपनी उस किस्मत को बदलते, देर नहीं लगती
न देखिये ख़्वाब ऐसा जो न हो पूरा कभी चूंकि ख़्वाबों को बिखरते, देर नहीं लगती
न लगाइये दौलतों का ये ढेर बेसबब यूं ही क्योंकि सांसों को अटकते, देर नहीं लगती
न खोइए इन दौलतों इन शोहरतों में दोस्त, चूंकि ख़ुदा को सर झटकते, देर नहीं लगती
औरों की तबाहियों से खुश न होइए "मिश्र" चूंकि तूफां को रुख बदलते, देर नहीं लगती
- शांती स्वरुप मिश्र ई-मेल: mishrass1952@gmail.com |