क्या संसार में कहीं का भी आप एक दृष्टांत उद्धृत कर सकते हैं जहाँ बालकों की शिक्षा विदेशी भाषाओं द्वारा होती हो। - डॉ. श्यामसुंदर दास।
सृजन-सिपाही (काव्य)  Click to print this content  
Author:श्रवण राही

लेखनी में रक्त की भर सुर्ख स्याही
काल-पथ पर भी सृजन के हम सिपाही,
तप्त अधरों पर मिलन की प्यास लिखते हैं
हम धरा की देह पर आकाश लिखते हैं

शब्द भावों से भरे हैं चुक नहीं सकते
क्रूर झंझावात में पग रुक नहीं सकते
देश हित उत्सर्ग अपने प्राण कर देंगे--
मौत के आगे कभी हम झुक नहीं सकते

त्याग-तप-सौहार्द का अमृत दिलाकर
विश्व में बन्धुत्व की कलियाँ खिलाकर
क्रूर पतझर पर मधुर मधुमास लिखते हैं
हम धरा की देह पर आकाश लिखते हैं

हम उतर जाते हैं गहरे सिन्धु के जल में
हम सुमन सुख के उगाते हैं मरुस्थल में
शक्ति से अधिकार अपने छीन लेते हैं
आ नहीं सकते किसी धृतराष्ट्र के छल में

कर्म के कुरुक्षेत्र में उतरे हैं सजकर
ले विजय संकल्प तन मन मोह तजकर
तीर पर गाण्डीव का विश्वास लिखते हैं
हम धरा की देह पर आकाश लिखते हैं

-श्रवण राही

 

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