गंगा बड़ी है हिमालय बड़ा है तुम बड़े हो या धरती बड़ी है तुम सरहदों पर रात दिन जल रहे मशाल हो
तुम इस मुल्क की आँखें हो-- हाथ हो, पर हो तुम सजग हो इसलिए देश को गुमान है तुम पर है नाज मुल्क को, तुम पर ही शान है
तुम जगे कि दिल में तिरंगा फहर उठा तुम उठे कि काल भी हुंकार कर उठा तुम चले कि आंधियों का भाल झुक गया तुम लड़े कि दुश्मनों का नाम मिट गया
तुम पर है नाज मुल्क को तुम पर ही शान है तुम सजग हो इसलिए देश को गुमान है
--रवीन्द्र भारती
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