तू शब्दों का दास रे जोगी तेरा कहाँ विश्वास रे जोगी
इक दिन विष का प्याला पी जा फिर न लगेगी प्यास रे जोगी
ये सांसों का का बन्दी जीवन किसको आया रास रे जोगी
विधवा हो गई सारी नगरी कौन चला वनवास रे जोगी
पुर आई थी मन की नदिया बह गए सब एहसास रे जोगी
इक पल के सुख की क्या क़ीमत दुख हैं बारह मास रे जोगी
बस्ती पीछा कब छोड़ेगी लाख धरे सन्यास रे जोगी
- राहत इन्दौरी
|