मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
सैनिक अनुपस्थिति में छावनी (काव्य)  Click to print this content  
Author:वीरेन डंगवाल

लाम पर गई है पलटन
बैरकें सूनी पड़ी हैं
निर्भ्रान्‍त और इत्‍मीनान से
सड़क पार कर रही बंदरों की एक डार

एक शैतान शिशु बंदर
चकल्‍लस में बार-बार
अपनी माँ की पीठ पर बैठा जा रहा
डाँट भी खा रहा बार-बार

छावनी एक साथ कितनी निरापद
और कितनी असहाय
अपने सैनिकों के बगैर

- वीरेन डंगवाल
[ साभार - हिन्दी समय] 

 

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