भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
पानी का रंग (काव्य)  Click to print this content  
Author:सुखबीर सिंह

पानी के रंग जैसी हैं ये जिंदगी,
इसे जैसे बनाओगे वैसे ही बन जाएगी।

अगर इरादे मजबूत हों तो
आसमान भी छुना मुश्किल नहीं।
अगर हम ही कमजोर हों तो
ये जिंदगी भी हार मान जाएगी।

पानी के रंग जैसी हैं ये जिंदगी
इसे जैसे बनाओगे वैसे ही बन जाएगी।

किस्मत पे यकीन करना तू छोड़ दे
बस अपने कर्म करने पर जोर दे।
हर एक पल बड़ा कीमती हैं, दोस्त
बीती घड़ी दोबारा हाथ नहीं आएगी।

पानी के रंग जैसी हैं ये जिंदगी
इसे जैसे बनाओगे वैसे ही बन जाएगी।

हाथ की लकीरों को
देखने से कुछ नहीं होगा।
दुनिया में वे लोग भी होते हैं
जिनके हाथ नहीं होते।

चलते रहो अपने मुकाम की ओर
सफलता एक दिन जरूर हाथ आएगी।

पानी के रंग जैसी हैं ये जिंदगी
इसे जैसे बनाओगे वैसे ही बन जाएगी।

- सुखबीर सिंह
ई-मेल: sukhbir052@gmail.com

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