जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।
सबसे ख़तरनाक (काव्य)  Click to print this content  
Author:अवतार सिंह संधू 'पाश'

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती

बैठे-बिठाए पकड़े जाना -- बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना -- बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना -- बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ना -- बुरा तो है
मुट्ठियां भींचकर बस वक्‍़त निकाल लेना -- बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है

सबसे ख़तरनाक वह आँख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्‍बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अंधेपन की भाँप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर मेन खो जाती है

सबसे ख़तरनाक वह चाँद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है
पर आपकी आँखों को मिर्चों की टीआरएच नहीं गड़ता है

सबसे ख़तरनाक वह गीत होता है
जो आपके कानों तक पहुँचने के लिए
जो मरसिए पढ़ता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है

सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्‍मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती।

- अवतार सिंह संधू 'पाश'
[09 सितम्बर 1950 - 23 मार्च 1988]
पाश समकालीन पंजाबी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि हैं। विद्रोही कविता को सृजनात्मक तेवर देने में सिद्धहस्त!

 

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