मन रामायण जीवन गीता यह घट आधा वह घट रीता
कैसे गुज़री रात न पूछो मत पूछो दिन कैसे बीता
राम भरोसे अग्नि-परीक्षा भोग रही वनवासिन सीता
सिल सकती है फटी कथरिया फटी बिवाई कैसे सीता
दो पहचानें हैं इस युग की काली पट्टी, रक्तिम फीता
हार हुई खरबूजों की ही गिरा जिधर भी चाकू जीता
भोला था पी गया हलाहल करता भी क्या, अगर न पीता
-सोम अधीर |