क्यों न कुछ शब्द चुन लूँ, कोई कविता या कहानी बुन लूँ, भाव मेरे, संवेदना मेरी, उथल-पुथल मेरे मन की, क्यों ढूँढू, क्यों उधार लूँ, क्यों न कोई गीत स्वयं गुन लूँ।
कौन करे मेरी अभिव्यक्ति, मैं स्वयं की पहचानूँ शक्ति, क्यों करूँ आशा-अभिलाषा, क्यों न मैं स्वयं का स्वर बनूँ।
अवसाद, विषाद, हर्ष, उल्लास सब मेरे, हिम्मत मेरी, हौसला मेरा, रण करूँ, भ्रमित मन से, क्यों न स्थितप्रज्ञ कहलाऊँ।
तृष्णा मेरी, मारीचिका मेरी, क्यों ढूँढू राम को, डरूँ क्यों रावण से, क्यों आरोपित हूँ लाँघने की लक्ष्मण रेखा, क्यों न अरण्य जीवन के मृग झरने से प्यास बुझाऊँ, मैं दुर्गा, मैं ही ब्रह्म कहलाऊँ।।
- मनीषा एन पाठक djp23238@gmail.com |