भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
क्यों न  (काव्य)  Click to print this content  
Author:मनीषा एन पाठक

क्यों न कुछ शब्द चुन लूँ,
कोई कविता या कहानी बुन लूँ,
भाव मेरे, संवेदना मेरी,
उथल-पुथल मेरे मन की,
क्यों ढूँढू, क्यों उधार लूँ,
क्यों न कोई गीत स्वयं गुन लूँ।

कौन करे मेरी अभिव्यक्ति,
मैं स्वयं की पहचानूँ शक्ति,
क्यों करूँ आशा-अभिलाषा,
क्यों न मैं स्वयं का स्वर बनूँ।

अवसाद, विषाद, हर्ष, उल्लास सब मेरे,
हिम्मत मेरी, हौसला मेरा,
रण करूँ, भ्रमित मन से,
क्यों न स्थितप्रज्ञ कहलाऊँ।

तृष्णा मेरी, मारीचिका मेरी,
क्यों ढूँढू राम को,
डरूँ क्यों रावण से,
क्यों आरोपित हूँ लाँघने की लक्ष्मण रेखा,
क्यों न अरण्य जीवन के मृग झरने से प्यास बुझाऊँ,
मैं दुर्गा, मैं ही ब्रह्म कहलाऊँ।।

- मनीषा एन पाठक
djp23238@gmail.com

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