भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
क्षणिकाएँ  (काव्य)  Click to print this content  
Author:कोमल मेहंदीरत्ता

विडंबना


इक अदना-सा मोबाइल
कुछ हजार या
कुछेक का, लाख़ का भी मोबाइल
कभी दूर के रिश्तों को जोड़ता था
आज
पास के रिश्तों को ही तोड़ता है मोबाइल


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दिखावे की दुनिया


हमारे रूतबे का प्रतीक : सड़कों पर दौड़ती-चमकती गाडियाँ
घंटो जाम में खड़ी है अपने एक अदद मालिक और टोपी धारी शॉफर के साथ ।
बड़े-बड़े शहरों की लगातार छोटी होती जाती सड़कें भी बेचारी क्या करें?
हाय! ये दिखावे की दुनिया, ये होड़ा-होड़ी।

- कोमल मेहंदीरत्ता
komalmendiratta@hotmail.com

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