मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज्जत करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिंदी की इज्जत न हो, यह मैं नहीं सह सकता। - विनोबा भावे।
हम और वनवासी (काव्य)  Click to print this content  
Author:कुमार हर्ष

सुना है वनवासियों के चाँद से गहरे रिश्ते हैं।
उनकी ज़मीन और आसमान तो हमने छीन ही लिया
चलो चाँद भी छीन लाते हैं।

उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके अपने घरों में लगा लेगें।
शायद इससे थोड़ी खुशी मिल जाए हमें।

पर आश्चर्य होता है वो वनवासी खुश कैसे हैं?
क्या पहाड़ियों और तालाबों ने ज़मीन दे दी उन्हें?
या पेड़ों और पत्तों ने आसमान दे दिया?

हम चाँद छीन भी लें तो
जुगनू की रोशनी में त्यौहार मना लेंगे वो।
इतना सबकुछ करने के बाद भी,
हम उनकी खुशी छीनकर आपस में बाँट नहीं सकते।

शायद, इसलिए की वनवासियों के आपस में भी गहरे रिश्ते हैं।
हम चाँद बाँटते हैं, वो खुशियाँ।

- कुमार हर्ष
kharsh@ar.iitr.ac.in

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