भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
आदमी से अच्छा हूँ ....! (काव्य)  Click to print this content  
Author:हलीम 'आईना'

भेड़िए के चंगुल में फंसे
मेमने  ने कहा--
'मुझ मासूम को खाने वाले
हिम्मत है तो
आदमी को खा!'

भेड़िया बोला--
'अबे! तूने मुझे
उल्लू का पट्ठा
समझ रखा है क्या?

मैं जैसा हूँ, ठीक हूँ
ज्यादा क्रूर
नहीं बनना चाहूँगा

मैं आदमी को खाऊँगा
तो आदमी ना बन जाऊँगा?

बेटा! तू अभी बच्चा है,
अक़्ल का कच्चा है!

अरे! भेड़िया ही तो
आजकल
आदमी से अच्छा है....!'

-हलीम 'आईना' 
[ हँसो भी....हँसाओ भी.... सुबोध पब्लिशिंग  हाउस, कोटा ]

 

 

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