भाषा का निर्माण सेक्रेटरियट में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर। - रामवृक्ष बेनीपुरी।
दूब (काव्य)  Click to print this content  
Author:मंजू रानी

तुम ने कभी दूब को मरते देखा है
वह सदा जीवित रहती है।
अन्दर ही अन्दर अपनी जड़े फैलाती रहती है।
अनुकूल वातावरण में सब को पीछे छोड़
सारी धरा पर छा जाती है।
अपनी मिट्टी को अच्छे से जकड़े रहती है
इसलिए
हर मौसम सह जाती है।
सूखने के बाद भी
हरियाली
धरा पर फैला देती है।
ये दूब ही है
जो हर तूफान सह जाती है।
किसी भी रंग को हावी नहीं
होने देती है
इसलिए धरा को विपदाओं से
बचाती रहती है।
पर इंसा इस वहम में जीता है
कि उसने उसे कूचल दिया है
पर वह सदा जीवित रहती है
पर वह सदा जीवित रहती है।

- मंजू रानी
ई-मेल: manjurani2803@gmail.com

 

Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश