हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
मंकी और डंकी  (बाल-साहित्य )    Print  
Author:आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)
 


डंकी के ऊपर चढ़ बैठा,
जम्प लगाकर मंकी, लाल।
ढेंचूँ - ढेंचूँ करता डंकी,
उसका हाल हुआ बेहाल।

पूँछ पकड़ता कभी खींचता,
कभी पकड़कर खींचे कान।
कैसी अज़ब मुसीबत आई,
डंकी हुआ बहुत हैरान।

बड़े जोर से डंकी बोला,
ढेंचूँ - ढेंचूँ , ढेंचूँ - ढेंचूँ।
खों - खों करके मंकी पूछे,
किसको खेंचूँ, कितना खेंचूँ।

डंकी जी ने सोची युक्ति,
लोट लगाकर जड़ी दुलत्ती,
खीं-खीं करता मंकी भागा,
टूट गई उसकी बत्तीसी।

-आनन्द विश्वास

 

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