है असार संसार नहीं। यदि उसमें है सार नहीं तो सार नहीं है कहीं। जहाँ ज्योति है परम दिव्य, दिव्यता दिखाई वहीं; क्या जगमगा नहीं ए बातें तारक-चय ने कहीं? दिखलाकर अगाधता विभु की निधि-धारायें बहीं; कब न छटायें उसकी सब छिति तल पर छिटकी रहीं? दिव्य दृष्टि सामने आवरण-भीतें सब दिन ढहीं; अधिक क्या कहें, मुक्ति मुक्त मानव ने पाई यहीं।
-अयोध्याप्रसाद सिंह ‘हरिऔध’ |