जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
'स-सार' संसार (काव्य)    Print  
Author:अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh
 

है असार संसार नहीं।
यदि उसमें है सार नहीं तो सार नहीं है कहीं। 
जहाँ ज्योति है परम दिव्य, दिव्यता दिखाई वहीं; 
क्या जगमगा नहीं ए बातें तारक-चय ने कहीं? 
दिखलाकर अगाधता विभु की निधि-धारायें बहीं; 
कब न छटायें उसकी सब छिति तल पर छिटकी रहीं? 
दिव्य दृष्टि सामने आवरण-भीतें सब दिन ढहीं; 
अधिक क्या कहें, मुक्ति मुक्त मानव ने पाई यहीं।

-अयोध्याप्रसाद सिंह ‘हरिऔध’

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