जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
चलो कहीं पर घूमा जाए | गीत (काव्य)    Print  
Author:आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)
 

चलो कहीं पर घूमा जाए,
थोड़ा मन हल्का हो जाए।
सबके, अपने-अपने ग़म हैं,
किस ग़म को कम आँका जाए।

अनहोनी को, होना होता,
पागल मन को कौन बताए।
आँखों में सागर छलका है,
खारा जल बहता ही जाए।

कैसे पल हैं, भीगी पलकें,
गीली आँखें, कौन सुखाए।
कहाँ गए हैं, जाने वाले,
चलो किसी से पूछा जाए।

आना-जाना नियम सृष्टि का,
गए हुए को कौन बुलाए।
तुम तो चले गए निर्मोही,
बीता कल मन भुला न पाए।

-आनन्द विश्वास
 ईमेल: anandvishvas@gmail.com

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