रघुवीर सहाय (Raghuvir Sahay) का जन्म 9 दिसंबर 1929 को लखनऊ में हुआ था। आपने कविता, कहानी, निबंध विधाओं में साहित्य-सृजन किया।
आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी में एम.ए. किया। इसके पश्चात् आप पत्रकारिता से जुड़ गए। आप नवभारत टाइम्स और दिनमान से जुड़े रहे। भारतीय प्रेस परिषद् के सदस्य भी रहे। आपने समकालीन कविता हेतु कौमुदी कविता केन्द्र की स्थापना की।
आपको 'लोग भूल गए हैं' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
आज उन्हीं की कुछ रचनाएं यहाँ प्रकाशित की हैं।
उम्र
जब तुम बच्ची थीं तो मैं तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकता था अब तुम रोती हो तो देखता हूँ मैं।
- रघुवीर सहाय [लोग भूल गये हैं ]
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आपकी हँसी
निर्धन जनता का शोषण है कह कर आप हँसे लोकतंत्र का अंतिम क्षण है कह कर आप हँसे सबके सब हैं भ्रष्टाचारी कह कर आप हँसे चारों ओर बड़ी लाचारी कह कर आप हँसे कितने आप सुरक्षित होंगे मैं सोचने लगा सहसा मुझे अकेला पा कर फिर से आप हँसे
- रघुवीर सहाय [साभार - हँसो हँसो जल्दी हँसो]
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राष्ट्रगीत में भला कौन वह
राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य विधाता है फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है। मख़मल टमटम बल्लम तुरही पगड़ी छत्र चंवर के साथ तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर जय-जय कौन कराता है। पूरब-पच्छिम से आते हैं नंगे-बूचे नरकंकाल सिंहासन पर बैठा, उनके तमगे कौन लगाता है। कौन-कौन है वह जन-गण-मन- अधिनायक वह महाबली डरा हुआ मन बेमन जिसका बाजा रोज बजाता है।
-रघुवीर सहाय |