हिन्दी साहित्य में प्रगतिशील लेखन के अग्रणी कवि पंडित बालकृष्ण शर्मा "नवीन" का जन्म 8 दिसम्बर 1897 को ग्वालियर राज्य के भयाना गांव में हुआ था।
"कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाये,
एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये, प्राणों के लाले पड़ जायें, त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाये,
नाश और सत्यानाशों का, धुआँधार जग में छा जाये, बरसे आग, जलद जल जाये, भस्मसात् भूधर हो जायें,
पाप-पुण्य सद्-सद् भावों की धूल उड़ उठे दायें-बायें, नभ का वक्ष-स्थल फट जाये, तारे टूक-टूक हो जायें,
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाये"
अन्य रचना देखिये -
"लपक चाटते जूठे पत्ते जिस दिन देखा मैंने नर को, उस दिन सोचा क्यों न लगा दूँ, आग आज इस दुनिया भर को फिर यह सोचा क्यों न टेंटुआ घोटा जाए स्वयं जगपति का जिसने अपने ही स्वरूप को रूप दिया इस घृणित विकृति का।"
कवि का संकल्प देखें -
"रैन बसेरा नहीं मिले यदि, तो पथ में पड़ रहना, बिना वस्त्र, यदि ठण्ड लगे तो योंहीं यार अकड़ रहना। सुबह देखकर लोग कहेंगे : लो, यह तो था वह यात्री। पर, जीते जी कातर होकर, तुम मत दीन वचन कहना।" |