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दो क्षणिकाएं
कवि
तुम्हारी कलम में
वो 'पीर' नहीं।
तुमने शब्द गढ़े,
जीये नहीं।
तुम कवि तो हुए
कबीर नहीं!
- रोहित कुमार 'हैप्पी'
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स्पष्टीकरण
हाँ, मैंने कहा था--
अच्छे दिन आएँगे।
कब कहा था, लेकिन --
तुम्हारे?
...
आज़ादी
भोग रहे हम आज आज़ादी, किसने हमें दिलाई थी!
चूमे थे फाँसी के फंदे, किसने गोली खाई थी?
बलिवेदी को शीश दिया था, मौत से करी सगाई थी,
क्या ‘ऐसी आज़ादी' खातिर हमने जान गंवाई थी?
मांग रहा था देश खून जब, किसने प्यास बुझाई थी?
...
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