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लघुकथाएं |
लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँ व प्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें। |
Articles Under this Category |
जाति - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai |
कारख़ाना खुला। कर्मचारियों के लिए बस्ती बन गई। |
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चल, भाग यहाँ से - दिलीप कुमार |
“चल, भाग यहां से...जैसे ही उसने सुना, वो अपनी जगह से थोड़ी दूर खिसक गयी। वहीं से उसने इस बात पर गौर किया कि भंडारा खत्म हो चुका था। बचा-खुचा सामान भंडार गृह में रखा जा चुका था। जूठा और छोड़ा हुआ भोजन कुत्तों और गायों को दिया जा चुका था यानी भोजन मिलने की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो चुकी थी। |
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सत्य और असत्य - मुक्तिनाथ सिंह |
मनुष्य की छाया मनुष्य से बोली, 'देखो! तुम जितने थे, उतने ही रहे, पर मैं तुमसे कितना गुना बढ़ गई हूँ।' |
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गाय की रोटी | लघुकथा - सुशील शर्मा |
कल जब शर्मा जी शाम को घूम कर लौट रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक गाय दो बछड़ों के साथ एक घर के दरवाजे पर खड़ी थी ,घर की मालकिन ने एक रोटी लाकर बछड़े को देने की कोशिश की तो गाय ने बछड़े को धकिया कर खुद रोटी खाने लगी। शर्मा जी ने देखा कि वह गाय हर घर में जाती और खुद रोटी खाती पर बछड़ों को दूर कर देती। |
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वह बच्चा थोड़े ही न था - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
वह एक लेखक था। उसके कमरे में दिन-रात बिजली जलती थी। एक दिन क्या हुआ कि बिजली रानी रूठ गई। |
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