प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।

गाय की रोटी | लघुकथा  (कथा-कहानी)

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Author: सुशील शर्मा

कल जब शर्मा जी शाम को घूम कर लौट रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक गाय दो बछड़ों के साथ एक घर के दरवाजे पर खड़ी थी ,घर की मालकिन ने एक रोटी लाकर बछड़े को देने की कोशिश की तो गाय ने बछड़े को धकिया कर खुद रोटी खाने लगी। शर्मा जी ने देखा कि वह गाय हर घर में जाती और खुद रोटी खाती पर बछड़ों को दूर कर देती।

शर्मा जी का मन बहुत भारी हो गया, सोचने लगे कि देखो कलियुग आ गया। गाय जिसे हम सबसे ज्यादा परोपकारी मानते हैं, वह भी कलियुग के प्रभाव में अपने बछड़ों को भूखा रखकर खुद रोटी खा रही है।

कुछ देर बाद जब शर्माजी बाजार के लिए निकले तो उन्होंने देखा कि वो दोनों बछड़े अपनी माँ का दूध पी रहें हैं और वह गाय बड़े दुलार से उन्हें चाट रही है। शर्मा जी को सारा मामला समझ में आ गया। शर्मा जी जब उसके बाजू से निकले तो जैसे गाय उनसे कह रही हो "क्यों शर्मा जी, अब समझ में आया कि वो सारी रोटी मैं क्यों खाती थी? ...ताकि हम तीनों जीवित रह सकें, मेरे दूध से मेरे दोनों बछड़े पल रहे हैं। अगर मैं रोटी नहीं खाती तो ये दूध कहाँ से निकलता और मेरे बच्चे कैसे पलते?" शर्मा जी की आँखों में अब गाय और उसकी समझदारी के लिए अनन्य प्रेम भाव था।

-सुशील शर्मा

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