हमने अपने हाथों में जब धनुष सँभाला है,
बाँध कर के सागर को रास्ता निकाला है।
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काव्य
इस श्रेणी के अंतर्गत
हमने अपने हाथों में
गिरमिटिया की पीर
मैं पीड़ा की पर्ण कुटी में
पीर पुराण भरी गाथा हूँ
गिरमिटिया बन सात समंदर
पार गया वह व्यथा कथा हूँ।
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मेरी औक़ात का...
मेरी औक़ात का ऐ दोस्त शगूफ़ा न बना
कृष्ण बनता है तो बन, मुझको सुदामा न बना
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जिस तिनके को ...
जिस तिनके को लोगों ने बेकार कहा था
चिड़िया ने उसको अपना संसार कहा था
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कब निकलेगा देश हमारा
पूछ रहीं सूखी अंतड़ियाँ
चेहरों की चिकनाई से !
कब निकलेगा देश हमारा निर्धनता की खाई से !!
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चांद कुछ देर जो ... | ग़ज़ल
चांद कुछ देर जो खिड़की पे अटक जाता है
मेरे कमरे में गया दौर ठिठक जाता है
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नम्रता पर दोहे
सच्चा सद्गुण नम्रता, है अमूल्य यह रत्न।
नम्र सदा विजयी रहे, व्यर्थ अहं के यत्न॥
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संकल्प-गीत
हम तरंगों से उलझकर पार जाना चाहते हैं।
कष्ट के बादल घिरें हम किंतु घबराते नहीं हैं
क्या पतंगे दीपज्वाला से लिपट जाते नहीं हैं?
फूल बनकर कंटकों में, मुस्कराते ही रहेंगे,
दुख उठाए हैं, उठाएंगे, उठाते ही रहेंगे।
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मातृभाषा प्रेम पर भारतेंदु के दोहे
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥
अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥
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गूंजी हिन्दी
राष्ट्र संघ के मंच से, हिन्दी का जयकार;
हिन्दी का जयकार, हिन्द हिन्दी में बोला;
देख स्वभाषा-प्रेम, विश्व अचरज से डोला;
कह कैदी कविराय, मेम की माया टूटी;
भारत माता धन्य, स्नेह की सरिता फूटी!
- अटल बिहारी वाजपेयी
[कैदी कविराय की कुंडलियाँ]
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कैसी लाचारी
हाँ! यह कैसी लाचारी
भेड़ है जनता बेचारी
सहना इसकी आदत है--
मुड़ती वहाँ, जहाँ जाती!
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तेरा रूप | षट्पद
देखा है प्रत्यंग तुम्हारा, जो कहते थे;
जो सेवक-से साथ सर्वदा ही रहते थे;
जो अपने को बता रहे अवतार तुम्हारा;
जो कुछ हो तुम वही, कहें जो मैं हूँ सारा;
'भक्त' नहीं क्या विषय यह, अद्भुत और अनूप है,
समझ सके वे भी नहीं, कैसा तेरा रूप है !
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इन्द्र-धनुष
घुमड़-घुमड़ नभ में घन घोर,
छा जाते हैं चारों ओर
विमल कल्पना से सुकुमार
धारण करते हो आकार!
अस्फुट भावों का प्राणों में,
तुम रख लेते हो गुरु भार!!
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छन-छन के हुस्न उनका | ग़ज़ल
छन-छन के हुस्न उनका यूँ निकले नक़ाब से।
जैसे निकल रही हो किरण माहताब से।।
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टूट कर बिखरे हुए...
टूट कर बिखरे हुए इंसान कहां जाएंगे
दूर तक सन्नाटा है नादान कहां जाएंगे
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