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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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मेरी औक़ात का... - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek |
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वृत्त में क़ैद |
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संकल्प-गीत - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans |
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मातृभाषा प्रेम पर भारतेंदु के दोहे - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra |
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ये मत पूछो... - प्रदीप चौबे |
ये मत पूछो कब होगा |
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स्वदेश - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही |
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कुर्सी पर काका की कुंडलियाँ - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
कुरसीमाई |
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तेरे भीतर अगर नदी होगी | ग़ज़ल - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi |
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गूंजी हिन्दी - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee |
गूंजी हिन्दी विश्व में, स्वप्न हुआ साकार; राष्ट्र संघ के मंच से, हिन्दी का जयकार; हिन्दी का जयकार, हिन्द हिन्दी में बोला; देख स्वभाषा-प्रेम, विश्व अचरज से डोला; कह कैदी कविराय, मेम की माया टूटी; भारत माता धन्य, स्नेह की सरिता फूटी! - अटल बिहारी वाजपेयी [कैदी कविराय की कुंडलियाँ] ... |
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कैसी लाचारी - अश्वघोष |
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तेरा रूप | षट्पद - गुरुराम भक्त |
देखा है प्रत्यंग तुम्हारा, जो कहते थे; |
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इन्द्र-धनुष - मंगलप्रसाद विश्वकर्मा |
घुमड़-घुमड़ नभ में घन घोर, |
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छन-छन के हुस्न उनका | ग़ज़ल - निज़ाम-फतेहपुरी |
छन-छन के हुस्न उनका यूँ निकले नक़ाब से। |
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टूट कर बिखरे हुए... - ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र |
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