वह एक लेखक था। उसके कमरे में दिन-रात बिजली जलती थी। एक दिन क्या हुआ कि बिजली रानी रूठ गई।
वह परेशान हो उठा। पाँच घंटे हो गए।
तभी ढाई वर्ष का शिशु उधर आ निकला। मस्तिष्क में एक विचार कौंध गया। बोला, “बेटे! बिजली रूठ गई है, जरा बुलाओ तो उसे।"
शिशु ने सहज भाव से पुकारा, "बिजली रानी, देर हो गई, जल्दी आओ।" और संयोग देखिए, वाक्य पूरा होते-न-होते वह कमरा बिजली के प्रकाश में नहा उठा।
पापा वायुयान-चालक थे। उस दिन वे समय पर घर नहीं लौटे। एक घंटा, दो घंटा, पूरे चार घंटे हो गए। रात हो आई। मम्मी परेशान हो उठी।
तभी छोटी बच्ची भी पापा को पूछती-पूछती वहाँ आ पहुँची। मम्मी बोली, “बेटी, तुम्हारे पापा अभी तक नहीं आए। बहुत देर हो गई। तुम उन्हें पुकारो तो।”
बच्ची ने सहज भाव से पुकारा, "पापा देर हो गई, अब आ जाओ।" तभी दरवाजे की घंटी बज उठी। पापा खड़े मुस्करा रहे थे। कैसा अद्भुत संयोग था यह!
उसकी पत्नी दूर बहुत चली गई थी-- वहाँ जहाँ से डाक भी नहीं आती। एक दिन उसने सोचा, यदि मैं सच्चे मन से पुकारूँ तो क्या वह लौट नहीं आएगी।
वह सचमुच उसे बहुत प्यार करता था और उसका अभाव उसे बहुत खलता था, इसलिए एक दिन उसने सचमुच पुकार लिया— "प्रिये! तुम लौट आओ, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पा रहा ।"
पर वह नहीं आई। वह बच्चा थोड़े ही न था।
-विष्णु प्रभाकर |