भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
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तो हरे भरे बने रहिए न... - प्रो. बीना शर्मा

कहावत है, 'पेड़ सूखा तो परिंदों ने ठिकाना बदला।' जो उजाड़ हो जाते हैं, जो खाली हो जाते हैं, जिनके पास दूसरे को देने के लिए कुछ नहीं बचता, जो भाव शून्य होते हैं, लोग उनसे धीरे..धीरे किनारा कर लेते हैं। जिनमें देश और संस्था प्रेम तो छोड़ो, किसी के लिए भी कोई प्रेम भाव शेष नहीं रहता, उन जैसों के लिए ही लिखा गया होगा--
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दाँत - प्रतापनारायण मिश्र

इस दो अक्षर के शब्द तथा इन थोड़ी-सी छोटी-छोटी हड्डियों में भी उस चतुर कारीगर ने यह कौशल दिखलाया है कि किसके मुँह में दाँत हैं जो पूरा-पूरा वर्णन कर सके । मुख की सारी शोभा और यावत् भोज्य पदार्थो का स्वाद इन्हीं पर निर्भर है। कवियों ने अलक ( जुल्फ ), भ्रू ( भौं ) तथा बरुनी आदि की छवि लिखने में बहुत - बहुत रीति से बाल की खाल निकाली है, पर सच पूछिए तो इन्हों को शोभा से सबकी शोभा है । जब दाँतों के बिना पला-सा मुँह निकल आता है, और चिबुक ( ठोड़ी ) एवं नासिका एक में मिल जाती हैं उस समय सारी सुघराई मिट्टी में मिल जाती है।
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सिंगापुर में हिंदी का फ़लक | विश्व में हिंदी - डॉ संध्या सिंह | सिंगापुर

विश्व आज वैश्विक गाँव बनता जा रहा है और इस वैश्विक गाँव में तमाम भाषाएँ अपने वजूद को बरक़रार रखने की कोशिश में लगी हैं। एक भाषा का हावी होना कई बार दूसरी भाषा के लिए ख़तरा उत्पन्न कर देता है और ऐसा कई परिस्थितियों में देखा गया है कि इस जद्दोजहद की लड़ाई में कभी-कभी कुछ भाषाएँ और संकुचित होती जाती हैं लेकिन कुछ लड़कर और निखरती है। हिंदी को लेकर भी कई अटकलें उसके राजभाषा बनने के पूर्व से आज तक लगाई जाती रही हैं और हिंदी के भारत की राष्ट्रभाषा न बनने के कारण कई बार प्रसार में अड़चनें भी आई हैं। पर वहीं यह भी सत्य है कि भारत की राष्ट्रीय भाषा का दर्जा भले ही हिंदी को न मिला हो लेकिन भारत से बाहर भारत की प्रतिनिधि भाषा के रूप में वह अवश्य अपने पंख पसार रही है। हिंदी भाषा के प्रति पिछले कुछ वर्षों में अधिक जागरूकता बढ़ी है। आज अगर कहें कि हिंदी वह रेलगाड़ी स्वरूप प्रतीत हो रही है जो वैश्विक पुल पर अपनी गति से आगे बढ़ रही है तो संभवत: अतिशयोक्ति नहीं होगी। दुनिया के मानचित्र में भारतीयों ने हर भाग में पहुँचने की कोशिश की है और अपने साथ भाषा और संस्कृति की मंजुषा भी ले जाने की कोशिश की है। जैसा कि माना जाता है कि भाषा ही चाहे व्यक्ति हो, समाज हो या राष्ट्र हो उसकी अस्मिता-पहचान की निकष है। हिंदी में इस दायित्व को निभाने और पूरा करने की सभी खूबियाँ मौजूद हैं जिनके बल पर आज वह भारत की भाषा के साथ ही कहीं न कहीं विश्व भाषा की ओर बढ़ रही है। लाख विरोधों के बाद भी हिंदी अपनी पहचान विश्व जनता से करा चुकी है और आगे बढ़ रही है। हिंदी का वैश्विक परिदृश्य बहुत व्यापक है और यही व्यापकता हिंदी की लोकप्रियता का कारण है।
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यंत्र, तंत्र, मंत्र | व्यंग्य - डॉ सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

एक यंत्र था। उसके लिए राजा-रंक एक समान थे। सो, मंत्री जी की कई गोपनीय बातें भजनखबरी को पता चल गयीं। मंत्री जी कुछ कहते उससे पहले ही भजनखबरी उनकी पोल खोल बैठा। पहले तो मंत्री जी को खूब गुस्सा आया। वह क्या है न कि कुर्सी पर बने रहने के लिए गुस्से को दूर रखना पड़ता है। इसलिए मंत्री जी ने भजनखबरी को नौकरी से बर्खास्त करने की जगह उसे उसके यंत्र के साथ अपने कार्यालय में नियुक्त कर दिया।
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किसी राष्ट्र के वास्तविक निर्माता उस देश के शिक्षक होते हैं - डा. जगदीश गांधी

शिक्षक दिवस पर विशेष लेख
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महाकवि और धारा 420 सीसी की छूट - प्रो. राजेश कुमार

महाकवि रोज़-रोज़ की बढ़ने वाली क़ीमतों, पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों में लगी हुई आग, और रोज़-रोज़ लगाए जाने वाले तरह-तरह के टैक्स से बहुत परेशान थे। वे अपनी वेतन पर्ची में देखते थे की उनकी तनख़्वाह तो दिनोदिन घटती जा रही है, जो टैक्स का कॉलम जो था, वह दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। उन्हें ऐसा लगने लगा था कि शायद वे अपने लिए नहीं, बल्कि सरकार के लिए ही कमाई कर रहे हैं। सरकार कर-पर-कर लगाए जा रही है, और यहाँ कर में कुछ नहीं बचता – ऐसी परेशानी में भी उन्हें कविता सूझने लगी थी।
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शॉक | व्यंग्य - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai

नगर का नाम नहीं बताता। जिनकी चर्चा कर रहा हूँ, वे हिंदी के बड़े प्रसिद्ध लेखक और समालोचक। शरीर सम्पति काफी क्षीण। रूप कभी आकर्षक न रहा होगा। जब का जिक्र है, तब वे 40 पार कर चुके थे। बिन ब्याहे थे।
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दुष्यंत और भारती के सवाल-जवाब - भारत-दर्शन संकलन

एक बार दुष्यंत कुमार ने 'धर्मयुग' से लेखकों को मिलने वाले पारिश्रमिक को लेकर शिकायती लहजे में एक ग़ज़ल लिखकर संपादक को भेजी। उस समय ‘धर्मयुग’ के संपादक धर्मवीर भारती थे। उन्होंने भी अपनी मजबूरी को एक ग़ज़ल के रूप में व्यक्त करके दुष्यंत कुमार को भेज दिया। बाद में ये दोनों ग़ज़लें धर्मयुग में प्रकाशित भी हुई। यहाँ दुष्यंत कुमार और धर्मवीर भारती की दोनों ग़ज़लें प्रकाशित की जा रही हैं, आप भी आनंद उठाएँ।
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न्यूज़ीलैंड में हिंदी | क्या आप जानते हैं - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

न्यूज़ीलैंड में हिंदी : क्या आप जानते हैं? 
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न्यूज़ीलैंड में हिंदी का भविष्य और भविष्य की हिंदी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

लगभग 50 लाख की जनसंख्या वाले न्यूज़ीलैंड में अँग्रेज़ी और माओरी न्यूज़ीलैंड की आधिकारिक भाषाएं है। यहाँ सामान्यतः अँग्रेज़ी का उपयोग किया जाता है।

यद्यपि अंग्रेजी न्यूजीलैंड में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है तथापि माओरी और न्यूजीलैंड सांकेतिक भाषा, दोनों को औपचारिक रूप से न्यूजीलैंड की आधिकारिक भाषाओं के रूप में संवैधानिक तौर पर विशेष दर्जा प्राप्त है। यहाँ के निवासियों को किसी भी कानूनी कार्यवाही में माओरी और न्यूजीलैंड सांकेतिक भाषा का उपयोग करने का अधिकार है।
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ब्रिटिश प्रधानमंत्री-ऋषि सुनक - विनीता तिवारी

हाल ही में इंग्लैंड के 56वे प्रधानमंत्री पद के लिए ऋषि सुनक का चुना जाना इंग्लैंड और बाक़ी दुनिया के लिए तो एक सनसनीख़ेज़ खबर है ही, मगर उससे भी कहीं बहुत-बहुत ज़्यादा ये बात भारत में चर्चा का केंद्र बनी हुई है! सुनने में आ रहा है कि इस चर्चा की वजह उनके भारतीय मूल का निवासी होना है और अब भारतीय मूल के किसी इंसान का इंग्लैंड में प्रधानमंत्री बनना कुछ भारतीयों को इंग्लैंड में अपना साम्राज्य स्थापित होने जैसा महसूस हो रहा है। किसी को इस राजनैतिक उथल-पुथल में ब्रिटिशर्स को अपने अनैतिक कर्मों का फल मिलता दिखाई दे रहा है तो किसी को इंग्लैंड की राजनीति में भारत और वहाँ रहने वाले प्रवासी भारतीयों को एक विशिष्ट अतिथि का दर्जा मिलने की संभावना दिखाई दे रही है। रब्बा ख़ैर करे ये इंसान का दिमाग़ भी क्या चीज़ है न, कि हर सूचना में सबसे पहले अपना व्यक्तिगत फ़ायदा नुक़सान ढूँढने लगता है।
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